Tratak Kriya | जाने त्राटक के चमत्कार | दिमाग को शक्ति से भरने का सबसे सरल तरीका !
Tratak Meditation Kriya|त्राटक के चमत्कार
ध्यान भारतीय संस्कृति में एक श्रेष्ठ और प्राचीन प्रक्रिया है, जिसे अपनाकर आत्मज्ञान और शांति प्राप्त की जा सकती है। Tratak ध्यान धारण करने का एक प्रकार है, जिसका मुख्य उद्देश्य दिमाग को शक्ति से भरने और अधिक समर्थ बनाने में सहायता करना है। Tratak Kriya मानसिक और शारीरिक दोनों स्तरों पर अनुशासन और ध्येय की एकाग्रता को विकसित करता है।
त्राटक का अर्थ होता है किसी चीज को लगातार बिना पलक झपकाए एकटक होकर देखना। इसे एक तरह की दिव्य साधना भी कहते हैं।
त्राटक से मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, सम्मोहन, अदृश्य वस्तु को देखना, दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। संकल्प शक्ति व कार्य सिद्धि के योग बनते हैं। आँखों के लिए तो त्राटक लाभदायक है ही साथ ही यह आपकी एकाग्रता को बढ़ाता है। इसका नियमित अभ्यास करने से:-
- मानसिक शांति प्राप्त होती है।
- आँखों के सभी रोग मिट जाते हैं।
- मन का विचलन खत्म हो जाता है।
- याददाश की समस्या भी दूर होती है।
- आंखों की रोशनी बढ़ती है।
- दूसरों के मन के विचारों को ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
त्राटक को सम्मोहन, वशीकरण और कई नामों से पुकारा जाता है। इसके जरिए हम अपनी आंखों और मस्तिष्क की शक्तियों को जागृत करके उन्हें इतना प्रभावी और शक्तिशाली कर सकते हैं कि मात्र सोचने और देखने भर से ही कोई भी चीज हमारे पास आ जाएगी।
मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की अनेकानेक पद्धतियाँ शास्त्र में निहित हैं। इनमें त्राटक उपासना सर्वोपरि है। त्राटक के निरंतर अभ्यास से अनेक प्रकार की चमत्कारी सिद्धियाँ प्राप्त जाती हैं। दृष्टिमात्र से अग्नि उत्पन्न करने वाले योगियों में भी त्राटक सिद्धि रहती है।
Tratak Kriya कैसे करें
त्राटक की साधना करने के लिये किसी भगवान, देवी, देवता, महापुरुष के चित्र, मुर्ति या चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा गोलाकार, चक्राकार, बिन्दु, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है।
त्राटक के लिए प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम है। त्राटक को रात्रि में भी किया जा सकता है। दिन में सूर्य का प्रकाश फैला रहने से यह साधना ठीक तरह से नही हो पाती। अगर आपको दिन में ही यह साधना करनी हो तो अँधेरे कमरे का प्रबन्ध करना होता है।
साधना करते समय कमर सीधी, हाथ गोदी में, पालथी सही-रखकर बैठना चाहिए.
वातावरण में घुटन दुर्गन्ध, मक्खी, मच्छर जैसे चित्त में विक्षोभ (Disturbance) उत्पन्न करने वाली बाधाएँ नहीं हो।
यह अभ्यास दस मिनट में आरम्भ करके उसे एक-एक मिनट बढ़ाते हुए एक दो महीने में अधिक से अधिक आधे घण्टे तक पहुँचाया जा सकता है। इससे अधिक नहीं किया जाना चाहिए।
खुली आँखों से प्रकाश को दो से पाँच सेकेण्ड तक देखना चाहिए और आँखें बन्द कर लेनी चाहिए। जिस जगह दीपक जल रहा है उसी स्थान पर उस ज्योति को ध्यान के नेत्रों से देखने का प्रयत्न करना चाहिए।
एक मिनट बाद फिर से अपनी ऑंखें खोल लें और पहले की तरह फिर से कुछ सेकेण्ड खुली आँखों से ज्योति का दर्शन करके फिर आँखें बन्द कर लें.
इस प्रकार प्रायः एक-एक मिनट के अन्तर से नेत्र खोलने और कुछ सेकेण्ड देखकर फिर आँखें बन्द करने और ध्यान द्वारा उसी स्थान पर ज्योति दर्शन की पुनरावृत्ति (repetition) करते रहनी चाहिए।
त्राटक में कौन सी सावधानी बरतें
- आँखों में किसी भी प्रकार की तकलीफ हो तो यह क्रिया ना करें।
- त्राटक के अभ्यास से आँखों और मस्तिष्क में गरमी बढ़ती है, इसलिए इसे करने के बाद तुरंत जल नेती क्रिया करना चाहिए।
- अधिक देर तक एक-सा करने पर आँखों से आँसू निकलने लगते हैं। ऐसा जब हो, तब अभ्यास छोड़ दें।
- यह क्रिया भी जानकार व्यक्ति से ही सीखनी चाहिए, क्योंकि इसके द्वारा आत्मसम्मोहन भी हो सकता है।
- कमजोर नेत्र ज्योति वालों को इस साधना को धीरे धीरे बढ़ाना चाहिए
Post a Comment