केतु के उपाय | शुभ केतु हो तो बन सकते हैं GREAT ASTROLOGER
जन्म कुंडली में राहू-केतु से प्रायः लोग बहुत डरते हैं. परन्तु जिस तरह सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं, उसी तरह इन्हें हमेशा बुरा नहीं माना जा सकता. ज्योतिष में इन दोनों ग्रहों के कई अच्छे फल भी बताये गए हैं कि अगर जन्म कुंडली में ये दोनों ग्रह शुभ अवस्था में हैं तो आपको राजा भी बना सकते हैं.
क्या है केतु
ज्योतिष के अनुसार केतु एक छाया ग्रह है। केतु तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य और मानसिक गुणों का कारक है। केतु मनुष्य के शरीर में अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
धनु राशि केतु की उच्च राशि है।
मिथुन केतु की नीच राशि है।
27 नक्षत्रों में केतु अश्वनी, मघा और मूल नक्षत्रों का स्वामी है.
केतु की महादशा 7 साल की होती है। केतु के कारण किसी भी व्यक्ति का स्वभाव कठोर हो सकता है। केतु से प्रभावित व्यक्ति बहुत जल्दी क्रोध में आ जाते हैं। केतु बुरा हो तो व्यक्ति की संगति खराब हो जाती है।
परंतु केतु कई मामलों में अच्छा परिणाम भी देता है। राहु और केतु जिन जिन राशियों में होते हैं उन राशियों के स्वभाव के अनुसार ही अपना फल देते हैं। केतु हमेशा बुरा फल नहीं देता है।
केतु और मंगल दोनों ग्रहों की दशा 7-7 साल की होती है। केतु का फल भी मंगल की तरह होता है।
केतु किस भाव में कैसा असर दिखाता है
पहले भाव में बैठा केतु मस्तिष्क से संबंधित बीमारी देता है। अगर केतु प्रथम भाव में हैं तो व्यक्ति चंचल, दुराचारी भी होता है। अगर पहले भाव में वृश्चिक राशि में हो तो व्यक्ति सुखी, धनी और मेहनती होता है।
द्वितीय भाग का केतु मुंह से संबंधित बीमारी देता है। दूसरे भाव में केतु विरोधी स्वभाव का होता है।
तृतीय भाव का केतु बहुत शुभ माना जाता है. इसमें बैठा केतु जातक की सभी प्रकार की विघ्न बाधाओं का समापन या नाश करके जातक को राजा बना देता है. तीसरे भाव में केतु चंचल और वात रोगी भी बनाता है।
ऐसा कहा गया है कि शनि अगर तीसरे भाव में हो तो छोटे-बड़े सभी भाई बहनों को खत्म कर देता है। मंगल अगर तीसरे भाव में अशुभ स्थिति में हो तो छोटे भाई को मारता है, सूर्य अगर तीसरे भाव में हो तो बड़े भाई को मारता है परंतु केतु अगर तीसरे भाव में हो तो सभी भाई बहनों को जिंदा भी रखता है और भाई का सुख भी मिलता है।
केतु के तीसरे भाव की स्थिति बहुत अच्छी मानी जाती है।वही केतु वृषभ राशि और मिथुन राशि में नहीं होना चाहिए। क्योंकि महर्षि पराशर के अनुसार वृषभ राशि में राहु उच्च होते हैं और केतु वृश्चिक राशि में उच्च होते हैं।
परंतु ऐसा पाया गया है कि राहु का मिथुन में, केतु का धनु में ज्यादा शुभ फल मिलता है।
चौथे भाव का केतु पिता की आयु को कम करता है। चौथे भाव में केतु ज्यादा चंचल और बहुत बोलने वाला होता है। अगर राहु चौथे भाव में हैं तो दसवें भाव में राहु होगा। अगर राहु और केतु चौथे व दसवें भाव में होते हैं तो माता से पहले पिता की मृत्यु होती है। पिता की आयु के लिए ऐसा बच्चा हानिकारक होता है।
पंचम भाव का केतु संतान सुख के लिए इंसान को रुला देता।
पांचवे भाव में केतु का प्रभाव-पांचवें भाव में केतु अगर पाप ग्रहों के प्रभाव में है उसका लग्नेश और द्वितीय निर्बल हो तो व्यक्ति की बुद्धि काम नहीं करेगी। वात रोग से व्यक्ति को परेशान रहेगा।
राहु या केतु पंचम भाव में संतान के लिए दुखदाई होते हैं। ऐसे लोगों का ब्लड ग्रुप नेगेटिव होता है। ऐसे लोगों की संतान या तो गर्भ में ही मर जाती है या होने के बाद। परंतु अगर केतु के उपाय किए जाएं तो संतान की प्राप्ति अवश्य होती है।
छठे भाव में केतु व्यक्ति को निरोगी बनाता है। छठे भाव में केतु व्यक्ति को वात रोग देता है। ऐसा व्यक्ति झगड़ालू और झूठ बोलने वाला होता है।
सातवें भाव का केतु दांपत्य जीवन में उथल-पुथल करवाता है। सातवें भाव में केतु व्यक्ति की बुद्धि बंद कर देता है। ऐसा व्यक्ति अपने विरोधियों से डरा डरा रहता है और सुख भोग नहीं पाता।
आठवें भाव का केतु बवासीर या गुदा से संबंधित बीमारी देता है ।
आठवें भाव में केतु अगर हो तो व्यक्ति तेज हीन और चालाक होता है। अगर उस पर राहु के अलावा शनि की भी दृष्टि हो जाए तो ऐसा व्यक्ति बावासीर जैसी बीमारी का शिकार होता है। ऐसे व्यक्ति वात रोग से पीड़ित रहता है। व्यक्ति के ऊपर निसंदेह पित्र दोष होता है।
ऐसा माना गया है की लगभग 90% लोग अगर बवासीर जैसी गुदा रोग से संबंधित बीमारी से पीड़ित हैं तो उन पर पितृदोष अवश्य होगा। अगर पितरों की शांति करा ले जाए तो यह रोग छोटी-छोटी दवाओं से भी ठीक हो सकता है।
नौवें भाव का केतु व्यक्ति को धर्म के मार्ग से भटकाता है। नौवें भाव भाग्य और धर्म का स्थान भी कहलाता है। अगर केतु शुभ स्थिति में होगा तो उसे सुख की इच्छा बहुत होगी।अगर केतु बुरे ग्रहों की स्थिति में है तो उसे मान सम्मान नहीं मिलेगा।
दशम भाव का केतु पिता और माता के स्वास्थ्य लिए हानिकारक होता है। दसवें भाव में केतु पित्र दोष देता है और भाग्यहीन बनाता है।
ग्यारहवें भाव का केतु संतान के लिए हानिकारक होता है। ग्यारहवें भाव में केतु हर प्रकार से लाभ देता है। ऐसा व्यक्ति भाग्यवान, गुणवान और तेजस्वी होता है। लेकिन ऐसे व्यक्ति को पेट में हमेशा रोग रहता है और व्यक्ति परेशान भी रहता है।
बारहवें भाव में केतु मोक्ष प्रदान करता है। पार्वती,शिव की आराधना के लिए प्रेरित करता है।
12वें भाव में केतु हो तो व्यक्ति को उच्च पद की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति शिव पार्वती का आराधक होता है। अगर वह यतन करे तो उसे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। व्यक्ति धर्मात्मा होता है। ऐसे व्यक्ति के विरोधी अपने आप नष्ट हो जाते हैं।
जैसे अगर बारहवें भाव में केतु के साथ मंगल, सूर्य या शनि हो जाए तो यह सारे शुभ प्रभाव रुक जाएंगे और अशुभ प्रभाव दिखाई देने लगेंगे। जैसे व्यक्ति का खर्चा बढ़ जाएगा, रोग, बीमारी हो जाएगी। व्यक्ति मुकदमे में फंस जाएगा। ऐसे में केतु की शांति का यतना जरूर करना चाहिए।
परंतु केतु ज्योतिष के लिए भी बहुत बड़ा कारक है। अगर केतु कुंडली में सही स्थिति में है तो व्यक्ति को भविष्यवक्ता भी बनता है। भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास पहले ही हो जाता है।
अशुभ केतु के लक्षण
केतु अगर बुरा है तो व्यक्ति को हर वक्त बुरा होने या अनहोनी की आशंका बनी रहती है। व्यक्ति शुभ अवसरों में भी अशुभ ही सोचता है। जन्म कुंडली में केतु के ख़राब होने से ऐसा व्यक्ति भूत-प्रेत, जादू टोना में ज्यादा विश्वास करता है। व्यक्ति को नींद अच्छे से नहीं आती। केतु भ्रम पैदा करता है, दुर्घटना करवाता है, बार बार पैर में चोट लगती है।
केतु बहुत ज्यादा ख़राब हो तो कानूनी विवादों में भी फंसाता है। लगातार धन हानि होती है, व्यापार में घाटा होता है, हाथ में आया अवसर निकल जाता है।
आपकी जन्मकुंडली में केतु अगर सूर्य,मंगल, शुक्र या बृहस्पति के साथ हो तो पितृदोष भी हो सकता है। पित्र दोष एक ऐसा दोष है कि आप लाख कोशिश कर लें,आपके घर में शुभ कार्य नहीं हो पाएंगे। घर में हर तरह का अभाव बना रहेगा, अनहोनी होती रहेगी।
अगर आपकी कुंडली के दूसरे भाव में केतु हो तो व्यक्ति को झूठ बोलने की आदत होती है। व्यक्ति नंबर एक का झूठा होता है।
कुंडली में चंद्रमा के साथ बैठा केतु दुनिया को तो रास्ता तो दिखा सकता है लेकिन खुद के लिए डिसीजन लेना पड़े तो उस समय वह भ्रमित हो जाता है, उसका दिमाग ही काम नहीं करेगा।
राहु केतु से वात पित्त विकार आसानी से हो जाता है। केतु का दुष्प्रभाव गर्दन के नीचे वाले हिस्से पर होता है। केतु खराब होने पर चर्म रोग होता है, जोड़ों में दर्द, शरीर की नसों में कमजोरी होती है।
अगर दूसरे भाव में केतु है और पाप ग्रहों की दृष्टि भी है तो ऐसे व्यक्ति को सुनने की समस्या होती है। व्यक्ति को खांसी आती रहती है। (केजरीवाल की तरह)
केतु अगर पांचवे या ग्यारहवें भाव में होगा तो निसंदेह व्यक्ति को संतान सुख में समस्या होगी ।
ऐसा शास्त्रों में कहा गया है कि अगर पांचवे भाव में केतु और 11वें भाव में राहु बैठा हो तो भगवान इंद्र भी अगर आपकी गोद में बच्चा दे दे तो भी आप संतान सुख के लिए हाहाकार ही करेंगे। लेकिन अगर पंचम भाव का स्वामी दूसरे भाव में या लग्न में है और राहु केतु की यही स्थिति है तो व्यक्ति को संतान सुख अवश्य मिलेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।
कुंडली में बैठे खराब केतु के कारण ही पथरी का निर्माण होता है। एक बार पथरी निकलने के बाद दोबारा से पथरी का बनना खराब केतु के कारण ही होता है।
जिन व्यक्ति की कुंडली में केतु खराब होता है उनके सर के बाल बीच से झड़ते हैं और जिनका केतू खराब नहीं होता, उनके आगे से बाल झड़ते हैं। आगे के बाल झड़ने वाले लोग भाग्यशाली होते हैं।
केतु के शुभ प्रभाव
केतु अगर धनु या वृश्चिक राशि में होगा तो शुभ प्रभाव देगा।
- केतु के ऊपर बृहस्पति, शुक्र या चंद्रमा की दृष्टि होगी तब शुभ प्रभाव देगा।
- अगर कुंडली में केतु शुभ स्थिति में है तो ऐसे व्यक्ति को मकान, दुकान, गाड़ी और उच्च पद की प्राप्ति होती है। मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। संतान सुख की प्राप्ति होती है। संतान अज्ञाकरी होती है।
- कुंडली में केतु के अच्छा होने से व्यक्ति को पूर्वाभ्यास का भी पता चल जाता है। केतु के शुभ होने पर वह अपने कुल का यश बढ़ाने वाला भी होता है। व्यक्ति के पैर बहुत मजबूत होते हैं। इसलिए केतु की शुभ स्थिति व्यक्ति के लिए वरदान भी साबित हो सकती है।
केतु का अलग-अलग ग्रहों के साथ प्रभाव-
- केतू अगर सूर्य के साथ हो तो पिता को बहुत कष्ट होगा। पिता को बहुत चुनौतियां मिलेगी। ऐसे व्यक्ति का पिता जिंदगी भर खूब मेहनत करेगा और कभी वैभवशाली नहीं हो पाएगा।
- चंद्रमा के साथ केतु हो तो उसकी मां रोगी होगी। उसको शारीरिक कष्ट होगा। ऐसा जातक को निर्णय लेने में भी बहुत कष्ट होगा। वह दुविधा में रहेगा, उसकी बॉडी लैंग्वेज और चेहरे में हमेशा नकारात्मकता की रहेगी।
- मंगल के साथ केतु हो तो व्यक्ति अंधेरे से डरने वाला, भाइयों से डरने या नुकसान सहने वाला होगा और डरपोक स्वभाव का होगा।
- अगर बुध के साथ केतु है तो व्यक्ति दांत और कान के रोग से, चर्म रोग भी हो सकता है, सोरायसिस जैसी बीमारी से ग्रसित हो सकता है.
- बृहस्पति के साथ केतु हो तो गुरु चांडाल योग बनता है। उसके हर शुभ कार्य में देरी और विलंब होता है। अगर गुरु के साथ केतु है तो ओम नमः शिवाय, शिव सहस्त्रनामावली का पाठ शुरू कर देना चाहिए।
- शुक्र के साथ केतु हो तो पत्नी की सेहत में बार-बार गिरावट आती है. विलासिता से जुड़ी वस्तुओं में नुकसान होता है।
- शनि के साथ केतु हो तो विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ता है।
केतु के आसान और कारगर उपाय-
- अगर कुंडली में केतु शुभ स्थिति में नहीं है तो व्यक्ति को पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाना चाहिए।
- पीपल के पेड़ की क्लॉक वाइज परिक्रमा करनी चाहिए।
- शनिवार को एक लोटा पानी में कुशा और दूर्वा डाल कर जल चढ़ाना चाहिए।
- केतु के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए भगवान भैरव की उपासना भी करनी चाहिए।
- इन्हें हनुमान, गणेश और मां दुर्गा की उपासना करने से भी खराब केतु शांत होता है।
- त्रयोदशी तिथि या शनिवार को केतु की शांति के लिए व्रत रखना चाहिए।
- केतु को शांत करने के लिए उड़द,गर्म कपड़े, लोहा, छाता और कंबल दान करना चाहिए।
- गाय को हरा चारा खिलाना चाहिए।
- अपनी संतान से अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
- कुत्ते को पालना और कुत्ते की सेवा करना केतु के लिए लाभकारी है।
- अगर आपका केतु खराब लग रहा है तो आपको ॐ गं गणपतये मंत्र का मंत्र की 108 माला का नियमित 10 बार जप करना चाहिए।
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